Sunday, May 9, 2021

इसी को माया कहते हैं ...


*इसी को माया कहते हैं ...*

हमारी बिमारी यह है की हम विद्रोही हैं । हम किसी को अधिकारी मानने के लिए तैयार नहीं हैं । फिर भी प्रकृति इतनी शक्तिशाली है की वह किसी न किसी अधिकारी को हमारे ऊपर थोप ही देती है । हमें अपनी इन्द्रियों के माध्यम से प्रकृति के आधिपत्य को स्वीकार करना ही पड़ता है । यह कहना कि हम आत्म निर्भर हैं , व्यर्थ हैं , यह हमारी मुर्खता है । हम किसी के अधीन हैं और फिर भी हम कहते हैं की हमें किसी का आधिपत्य नहीं चाहिए । इसी को माया कहते हैं । हालाँकि हममें थोड़ी सी स्वतंत्रता अवश्य है की हम यह चुन सके की हम अपनी इन्द्रियों का आधिपत्य स्वीकार करें या श्रीकृष्ण का । किन्तु सबसे बड़े और परम अधिपति तो श्रीकृष्ण ही हैं क्योंकि वे हमारे शाश्चत शुभचिंतक हैं और वे हमेशा हमारे हित की ही बात करते हैं । जब हमें किसी का आधिपत्य स्वीकार करना ही है , तो क्यों न कृष्ण को ही अपना अधिपति बनायें ? 
*-( रसराज कृष्ण )*
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-Srila Prabhupada 
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