Tuesday, May 11, 2021

नमस्ते नृसिंहाय

नमस्ते नृसिंहाय  
प्रह्लादह्लाद दायिने। 
हिरण्यकशिपोर्वक्षः 
शिलाटंक नखालये॥1॥
इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो 
यतो यतो यामि ततो नृसिंहः। 
बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो 
नृसिंहमादि शरणं प्रपद्ये॥2॥
तव कर-कमल-वरे नखम्‌ अद्‌भुत-श्रृंङ्गम्‌ 
दलित-हिरण्यकशिपु-तनु-भृंङ्गम्‌ 
केशव धृत-नरहरिरूप जय जगदीश हरे॥3॥

अर्थ
(1) मैं नृसिंह भगवान्‌ को प्रणाम करता हूँ जो प्रह्लाद महाराज को आनन्द प्रदान करने वाले हैं तथा जिनके नख दैत्यराज हिरण्यकशिपु के पाषाण सदृश वक्षस्थल के ऊपर छेनी के समान हैं। 
(2) नृसिंह भगवान्‌ यहाँ है और वहाँ भी हैं। मैं जहाँ कहीं भी जाता हॅूँ वहाँ नृसिंह भगवान्‌ हैं। वे हृदय में हैं और बाहर भी हैं। मैं नृसिंह भगवान्‌ की शरण लेता हूँ जो समस्त पदार्थों के स्रोत तथा परम आश्रय हैं। 
(3) हे केशव! हे जगत्पते! हे हरि! आपने नरसिंह का रूप धारण किया है आपकी जय हो। जिस प्रकार कोई अपने नाखूनों से भ्रमर को आसानी से कुचल सकता है उसी प्रकार भ्रमर सदृश दैत्य हिरण्यकशिपु का शरीर आपके सुन्दर कर-कमलों के नुकीले नाखूनों से चीर डाला गया है।

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