Saturday, July 24, 2021

*गुरु पूजन की विधि*

जय गौर..!

श्री राधारमणो विजयते..!!

 गुरु पूर्णिमा महामहोत्सव के  उपलक्ष्य में आप सभी अपने घर में गुरुदेव का पूजन अर्चन इस प्रकार से करें।👏

 *गुरु पूजन की विधि* 

1. प्रातः काल स्नान आदि के पश्चात आप सभी अपने घर के मंदिर में जा कर, सबसे पहले श्री राधारमण देव जू के चरणों में और फिर अपनी सम्पूर्ण गुरु परंपरा के चरणों में दंडवत प्रणाम करें। 

२. स्वयं की पवित्री तथा आसन की शुद्धि के पश्चात, आप ठाकुरजी के सामने बैठ कर, उनके चरणों में अपनी गुरु परंपरा के चित्र पट को स्थापित करें और फिर एक दीप जलाएं।

३. तत्पश्चात महामंत्र का गान करते हुए सबसे पहले चंदन (घिसा हुआ) ठाकुरजी के चित्र पट को लगाएं और फिर सम्पूर्ण गुरु परंपरा को लगाएं।

४. इसके बाद हाथ जल से धो कर, पहले ठाकुरजी को और फिर गुरुदेव को रौली लगाएं महामंत्र का गान करते हुए।

५. फिर हाथ धो कर ठाकुरजी  के तिलक को अक्षत ( चावल) लगाएं और गुरुदेव को भी अक्षर लगाएं।

६. फूल की माला ठाकुरजी को और फिर गुरुदेव को अर्पित करें और उन्हें धारण कराएं।

७. माला अर्पित करके ठाकुरजी और गुरुदेव को भोग अर्पित करें। ठाकुरजी के भोग में तुलसी दल नहीं भूलें और मुद्रा दिखाते हुए भोग लगाएं और घंटा बजाएं।

८. फिर अपने आसन पर खड़े हो कर पहले ठाकुरजी की और फिर गुरुदेव की आरती  धूप से करें। उसके बाद वैसे ही आरती दीप से करें। दोनो समय घंटा बजेगा और महामंत्र का गान होगा।

९.  आरती के पश्चात चार प्रदक्षणा देकर, प्रणाम कर सभी वैष्णव मिल कर गुरुआष्टकम का गान करें।👏👏

 *श्री गुरुअष्टकम* 

संसार-दावानल-लीढ-लोक-
त्राणाय कारुण्य-घनाघनत्वम्
प्राप्तस्य कल्याण-गुणार्णवस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
महाप्रभोः कीर्तन-नृत्य-गीत-
वादित्र-माद्यन-मनसो रसेन
रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरङ्ग-भाजो
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
श्री-विग्रहाराधन-नित्य-नाना-
शृङ्गार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ
युक्तस्य भक्तांश् च नियुञ्जतोऽपि
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
चतुर्-विध-श्री-भगवत्-प्रसाद-
स्वाद्व्-अन्न-तृप्तान् हरि-भक्त-सङ्घान्
कृत्वैव तृप्तिं भजतः सदैव
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
श्री-राधिका-माधवयोर्-अपार-
माधुर्य-लीला गुण-रूप-नाम्नाम्
प्रति-क्षणास्वादन-लोलुपस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
निकुञ्ज-यूनो रति-केलि-सिद्ध्यै
या यालिभिर् युक्तिर् अपेक्षणीया
तत्राति-दाक्ष्याद् अति-वल्लभस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
साक्षाद् धरित्वेन समस्त-शास्त्रैर्
उक्तस् तथा भाव्यत एव सद्भिः
किन्तु प्रभोर् यः प्रिय एव तस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
यस्य प्रसादाद् भगवत्-प्रसादो
यस्याप्रसादान् न गतिः कुतोऽपि
ध्यायन् स्तुवंस् तस्य यशस् त्रि-सन्ध्यं
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
श्रीमद्-गुरोर् अष्टकम् एतद् उच्चैर्
ब्राह्मे मुहूर्ते पठति प्रयत्नात्
यस् तेन वृन्दावन-नाथ साक्षात्
सेवैव लभ्या जुषणोऽन्त एव।।

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