Tuesday, July 20, 2021

चातुर्मास्य

चातुर्मास्य

चातुर्मास्य अर्थात 4 महीने क्या करें क्या।न करें

आज आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास्य रहता है । इस में अनेक पहलू एवं भाव है 

आज की एकादशी को देवशयनी एकादशी बोलते हैं और कार्तिक शुक्ल की एकादशी को देव उठानी एकादशी कहते हैं तो एक पहलू तो यह है कि आज से 4 महीने तक देव शयन हो जाते हैं इसीलिए लौकिक संसार में कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं होता है सारे शुभ शुभ कार्य आज विश्राम ले लेते हैं 

दसरा पहलू है स्वास्थ्य को लेकर हम 12 महीने सब कुछ खाते रहते हैं यह 4 माह विशेष रूप से स्वास्थ्य का ध्यान रखें और शरीर को एक प्रकार से फिर से 8 महीने के लिए स्वस्थ बना लें। शरीर के विकारों को निकाल दें शरीर में जो रोग आदि हो गए हैं इन 4 महीनों में हम यदि भोजन शयन आदि का ध्यान रखें तो शरीर का विकार दूर हो जाए 

तीसरी दृष्टि है मौसम के हिसाब से इन 4 महीनों में प्राय बरसात का आक्रमण रहता है । आज तो आने जाने के साधन है । गाड़ी है बस है । कार है वायुयान विमान है आज से 200। 400 साल पहले बरसात के कारण नदियों में बाढ़ आ जाती थी कई रास्ते बंद हो जाते थे कई गाॅव बाढ़ में आ जाते थे तो उस समय इस का एक पहलू यह भी था के व्यक्ति 4 महीने किसी भी एक स्थान पर टिका रहे।

विशेषकर जो परिव्राजक साधु होते थे जो साल भर कभी कहीं कभी कहीं कभी एक वृक्ष के नीचे कभी दूसरे वृक्ष के नीचे भ्रमण करने वाले साधु 4 माह तक किसी एक स्थान पर रहते थे

आवागमन बंद करना भी इस चातुर्मास्य का एक पहलू है । 4 महीने तक ना कहीं जाना ना कहीं आना । एक ही नगर या स्थान में रहकर अपने अपने लक्ष्य को प्राप्त करना । जहां तक भोजन का सवाल है तो

सावन मास में अर्थात पहले महीने में हरी पत्तेदार सब्जियों का त्याग करने का आदेश है 

दूसरी भादो में दही के त्याग का आदेश है 

तीसरे माह आश्विन में दूध के त्याग का आदेश है

और कार्तिक मास में दाल के त्याग का आदेश है

और यह मैंने जैसा कि निवेदन किया शरीर के स्वास्थ्य और शरीर को विकार रहित बनाने के लिए है 

एक और इसका जो पहलु है वह वैष्णवों के लिए है । आप यदि ध्यान से देखें तो इन्हीं चार महीनों में गरु पूर्णिमा झूलन राधाष्टमी जन्माष्टमी एवं अन्य भी अनेक उत्सव आते हैं कुल मिलाकर हर प्रकार से भजन पर ही केंद्रित करना होता है रक्षाबंधन भी इसी दौरान में आता है किसी भी रुप में शरीर को स्वस्थ रखते हुए उससे भजन बने यह एक वैष्णव के केंद्र में रहता है 

इसी चातुर्मास्य में पितृपक्ष श्राद्ध आदि भी आते हैं । इसी चातुर्मास्य में पवित्र दामोदर मास भी आता है इसी में दीपावली आती है इसी में धनतेरस आता है और इसी में अन्नकूट आता है इसी में गोपाष्टमी आती है इसी में अक्षय नवमी आती है इसी में चैतन्य महाप्रभु जी का वृंदावन आगमन उत्सव आता है आदि आदि ।

वैष्णव को चाहिए वह यदि परिव्राजक है अर्थात घूमता है यात्राएं करता है तो यात्रा बंद कर देनी चाहिए । एक स्थान पर आसन लगाकर शरीर को शुद्ध रखें । ब्रह्मचर्य का पालन करें । सीमित भोजन करें । जो वस्तुएं निषेध की हैं उनको निषेध करें यथासंभव भजन में चित्त को लगायें

प्रचारकों को भी चाहिए कि वह 8 महीने प्रचार खूब करें लेकिन इन चार महीनों में आत्मशुद्धि आत्म कल्याण के लिए वह आचरण पर जोर दें कहीं कथा बांचने ना जाए 

और हम जैसे साधारण साधक इनका पालन करते हुए भजन करें । हर दिन आने वाले ठाकुर के उत्सव का आयोजन करें । आनंद से उनका पालन करें और आनंदित हो 

साथ ही क्या होता है यदि 4 महीने तक लगातार हमने कुछ नियमों का पालन किया तो वह हमारी आदत में भी आ जाते हैं । आगामी कुछ महीनों तक वह आदतें हमारी संस्कार बन जाती है फिर जीवन भर चलती है 

इस प्रकार यथासंभव अपनी परिस्थिति अपनी स्थिति अपने स्तर के अनुसार वैष्णवों को भजन पर केंद्रित होते हुए चातुर्मास व्रत का पालन करना चाहिए

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम  
जय श्री राधे ॥ जय निताई

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