Sunday, July 18, 2021

हेरा_पञ्चमी_उत्सव_पर_विशेष

#हेरा_पञ्चमी_उत्सव_पर_विशेष 💐::

रथ यात्रा के बाद आने वाली पञ्चमी को यह उत्सव मनाया जाता हैं ।श्री जगन्नाथ प्रभु अपनी पत्नी श्री लक्ष्मी जी को छोड़कर ( वृन्दावन ) जो यहाँ गुण्डिचा मन्दिर हैं ........पधारे हैं .......प्रभु के आने में विलम्ब होने के कारण श्री लक्ष्मी जी मन्दिर के बाहर हेरा करने ( देखने ) जाती हैं। आज " हेरा पञ्चमी "  अर्थात श्रीलक्ष्मी-विजय का दिन हैं ।

प्रातःकाल ही महाप्रभु अपने भक्तों के साथ सुन्दराचल गये ।( जहाँ गुण्डिचा मन्दिर हैं......उस स्थान को सुन्दराचल कहते हैं ।) और जगन्नाथ जी के दर्शन किये ।आज हेरा-पञ्चमी का उत्सव देखने के लिये प्रभु का मन बहुत उत्कण्ठित हो रहा हैं ।श्री काशीमिश्र ने बड़े आदर के साथ भक्तों के सहित श्री महाप्रभु को सुंदर स्थान पर बैठा दिया ।

प्रभु ने मुस्कुरा कर श्री रूप दामोदर से पूछा -" स्वरुप ! यद्यपि श्री जगन्नाथ जी यहाँ द्वारिका लीला करते हैं अर्थात वे लक्ष्मी जी के वश में रहते हैं तो भी वर्ष में एक बार उनके मन में श्री वृन्दावन दर्शन करने की अपार उत्कण्ठा जाग उठती हैं । यहाँ के जितने पुष्पोद्यान-वन हैं,वे श्री वृन्दावन के समान हैं । उन्हें देखने के लिये उनकी उत्कण्ठा होती हैं, बाहर से तो वे रथयात्रा का बहाना करते हैं और वे नीलाचल छोड़कर सुन्दराचल चले जाते हैं जहाँ पुष्पोद्यानो में दिन-रात लीला करते हैं ।परन्तु वे अपने साथ लक्ष्मी देवी को नही ले जाते ! .....इसका क्या कारण हैं ?? 

 श्री स्वरुप ने कहा -" प्रभो ! इसका कारण यह है कि वृन्दावन की लीला में श्री लक्ष्मी देवी का अधिकार नही है।श्री वृन्दावन की लीला में व्रज-गोपी गण ही सहायक है।उनके सिवा श्री कृष्ण का मन कोई भी हरण नही कर सकता ।

तब प्रभु ने कहा -"स्वरुप ! गोपियों से विहार करने का भाव प्रकट करके वे मन्दिर से बाहर नहीं जाते ।विशेषतः अपनी बहिन श्री सुभद्रा तथा बड़े भाई श्री बलदेव जी को भी साथ ले जाते हैं ।इससे श्री लक्ष्मी जी को यह संदेह भी नही होता कि श्री भगवान् निगूढ़ कुञ्जो में जाकर गोपियों के साथ लीला करते हैं ।उस निगूढ़ लीला को श्री कृष्ण ( श्री जगन्नाथ ) के अतिरिक्त और कोई भी नही जानत़ा है।इसलिये प्रकट रूप से तो जगन्नाथ जी का कोई दोष नहीं दिखता.....फिर भी श्री लक्ष्मी देवी प्रभु पर इतना क्रोध क्यों करती हैं ?

इस पर श्री स्वरुप ने कहा -" प्रेमवती , प्रेयसी का ऐसा स्वभाव होता है। श्री जगन्नाथ जी, श्री लक्ष्मी जी को अपने साथ नहीं ले जाते इसलिये श्री लक्ष्मी जी उन पर क्रोधित होती हैं ।श्री जगन्नाथ प्रभु ने जब रथ-यात्रा प्रारम्भ की थी उस समय श्री लक्ष्मी जी से अगले ही दिन वापिस लौटने का वचन दिया था....श्री लक्ष्मी देवी ने दो-तीन दिन तक प्रतीक्षा की और यह समझने लगी कि प्रभु को उनका विस्मरण हो गया । 

इस प्रकार श्रीमन महाप्रभु तथा स्वरुप बातें कर ही रहे थे इतने में अनेक रत्नों से जडित सोने की पालकी पर सवार ,जिनके साथ शत-शत दासीगण हाथों में छत्र, चामर, ध्वजा ,पताका लिये हुई थी और अनेक देव.... दासीगण नृत्यगान करती हुई जिनके आगे चल रही थी ...पानदान, व्यजन, चँवर हाथ में लिये हुए एवं दिव्य भूषण वस्त्र धारण किये हुए,असंख्य परिवार के साथ अलौकिक ऐश्वर्य युक्त श्री लक्ष्मी जी क्रोधित हो उपस्थित हुई ।श्री लक्ष्मी जी की दासियों ने श्री जगन्नाथ जी के सभी उपस्थित दासगणों को बंदी बना लिया और बाँधकर श्री लक्ष्मी जी के चरणों में उपस्थित किया...... जैसे बहुत सा धन ले जाने वाले चोरों को पकड़ कर राजा के आगे पेश किया जाता हैं ।

जब प्रभु के दास देवी लक्ष्मी जी के चरणकमलों में लाये जाते हैं ....तो वे अचेतन अवस्था में हैं ।लीलारस पुष्टि के लिये इस जड़वत् आचरण को यहाँ 'अचेतन ' कहकर वर्णन किया गया हैं ।

'हेरा पञ्चमी 'के दिन श्री लक्ष्मी जी भी अपनी दासियों के साथ मंदिर से सुन्दराचल जाती हैं और यह लीला सम्पूर्ण होती हैं ।

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