Wednesday, July 28, 2021

Female Devotee

Certainly if a Female devotee study's and understands Srila Prabhupada's Books she will have the Same Intelligence as a Male devotee, because Srila Prabhupada says, ''it is definitely concluded that the brain substance is not the center of intelligence; it is the consciousness of a particular soul that works intelligently.''....

Prabhupada: The modern scientific theory that the brain substance is the cause of all intelligent work is not valid. The brain substance of Daksa and that of a goat are different, but Daksa still acted like himself, even though his head was replaced by that of a goat. The conclusion is that it is the particular consciousness of an individual soul which acts. The brain substance is only an instrument which has nothing to do with real intelligence. The real intelligence, mind and consciousness are part of the particular individual soul. It will be found in the verses ahead that after Daksa's head was replaced by the goat's head, he was as intelligent as he had previously been. He prayed very nicely to satisfy Lord Siva and Lord Visnu, which is not possible for a goat to do. Therefore it is definitely concluded that the brain substance is not the center of intelligence; it is the consciousness of a particular soul that works intelligently. The whole movement of Krsna consciousness is to purify the consciousness. It doesn't matter what kind of brain one has because if he simply transfers his consciousness from matter to Krsna, his life becomes successful. It is confirmed by the Lord Himself in Bhagavad-gita that anyone who takes up Krsna consciousness achieves the highest perfection of life, regardless of whatever abominable condition of life he may have fallen into. Specifically, anyone in Krsna consciousness goes back to Godhead, back to home, on leaving his present material body.>>> Ref. VedaBase => SB 4.7.5

Saturday, July 24, 2021

*गुरु पूजन की विधि*

जय गौर..!

श्री राधारमणो विजयते..!!

 गुरु पूर्णिमा महामहोत्सव के  उपलक्ष्य में आप सभी अपने घर में गुरुदेव का पूजन अर्चन इस प्रकार से करें।👏

 *गुरु पूजन की विधि* 

1. प्रातः काल स्नान आदि के पश्चात आप सभी अपने घर के मंदिर में जा कर, सबसे पहले श्री राधारमण देव जू के चरणों में और फिर अपनी सम्पूर्ण गुरु परंपरा के चरणों में दंडवत प्रणाम करें। 

२. स्वयं की पवित्री तथा आसन की शुद्धि के पश्चात, आप ठाकुरजी के सामने बैठ कर, उनके चरणों में अपनी गुरु परंपरा के चित्र पट को स्थापित करें और फिर एक दीप जलाएं।

३. तत्पश्चात महामंत्र का गान करते हुए सबसे पहले चंदन (घिसा हुआ) ठाकुरजी के चित्र पट को लगाएं और फिर सम्पूर्ण गुरु परंपरा को लगाएं।

४. इसके बाद हाथ जल से धो कर, पहले ठाकुरजी को और फिर गुरुदेव को रौली लगाएं महामंत्र का गान करते हुए।

५. फिर हाथ धो कर ठाकुरजी  के तिलक को अक्षत ( चावल) लगाएं और गुरुदेव को भी अक्षर लगाएं।

६. फूल की माला ठाकुरजी को और फिर गुरुदेव को अर्पित करें और उन्हें धारण कराएं।

७. माला अर्पित करके ठाकुरजी और गुरुदेव को भोग अर्पित करें। ठाकुरजी के भोग में तुलसी दल नहीं भूलें और मुद्रा दिखाते हुए भोग लगाएं और घंटा बजाएं।

८. फिर अपने आसन पर खड़े हो कर पहले ठाकुरजी की और फिर गुरुदेव की आरती  धूप से करें। उसके बाद वैसे ही आरती दीप से करें। दोनो समय घंटा बजेगा और महामंत्र का गान होगा।

९.  आरती के पश्चात चार प्रदक्षणा देकर, प्रणाम कर सभी वैष्णव मिल कर गुरुआष्टकम का गान करें।👏👏

 *श्री गुरुअष्टकम* 

संसार-दावानल-लीढ-लोक-
त्राणाय कारुण्य-घनाघनत्वम्
प्राप्तस्य कल्याण-गुणार्णवस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
महाप्रभोः कीर्तन-नृत्य-गीत-
वादित्र-माद्यन-मनसो रसेन
रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरङ्ग-भाजो
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
श्री-विग्रहाराधन-नित्य-नाना-
शृङ्गार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ
युक्तस्य भक्तांश् च नियुञ्जतोऽपि
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
चतुर्-विध-श्री-भगवत्-प्रसाद-
स्वाद्व्-अन्न-तृप्तान् हरि-भक्त-सङ्घान्
कृत्वैव तृप्तिं भजतः सदैव
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
श्री-राधिका-माधवयोर्-अपार-
माधुर्य-लीला गुण-रूप-नाम्नाम्
प्रति-क्षणास्वादन-लोलुपस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
निकुञ्ज-यूनो रति-केलि-सिद्ध्यै
या यालिभिर् युक्तिर् अपेक्षणीया
तत्राति-दाक्ष्याद् अति-वल्लभस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
साक्षाद् धरित्वेन समस्त-शास्त्रैर्
उक्तस् तथा भाव्यत एव सद्भिः
किन्तु प्रभोर् यः प्रिय एव तस्य
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
यस्य प्रसादाद् भगवत्-प्रसादो
यस्याप्रसादान् न गतिः कुतोऽपि
ध्यायन् स्तुवंस् तस्य यशस् त्रि-सन्ध्यं
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
 
श्रीमद्-गुरोर् अष्टकम् एतद् उच्चैर्
ब्राह्मे मुहूर्ते पठति प्रयत्नात्
यस् तेन वृन्दावन-नाथ साक्षात्
सेवैव लभ्या जुषणोऽन्त एव।।

Thursday, July 22, 2021

आज का संदेश

आज का संदेश

          मानवीय गुणों में एक प्रमुख गुण है "क्षमा" और क्षमा जिस भी मनुष्य के अन्दर है वो किसी वीर से कम नही है। तभी तो कहा गया है कि- "क्षमा वीरस्य भूषणं और क्षमा वाणीस्य भूषणं" क्षमा साहसी लोगों का आभूषण है और क्षमा वाणी का भी आभूषण है। यद्यपि किसी को दंडित करना या डाँटना आपके वाहुबल को दर्शाता है।

           मगर शास्त्र का वचन है कि बलवान वो नहीं जो किसी को दण्ड देने की सामर्थ्य रखता हो अपितु बलवान वो है जो किसी को क्षमा करने की सामर्थ्य रखता हो। अगर आप किसी को क्षमा करने का साहस रखते हैं तो सच मानिये कि आप एक शक्तिशाली सम्पदा के धनी हैं और इसी कारण आप सबके प्रिय बनते हो।

           आजकल परिवारों में अशांति और क्लेश का एक प्रमुख कारण यह भी है कि हमारे जीवन से और जुवान से क्षमा नाम का गुण लगभग गायब सा हो गया है। दूसरों को क्षमा करने की आदत डाल लो जीवन की कुछ समस्याओं से बच जाओगे। निश्चित ही अगर आप जीवन में क्षमा करना सीख जाते हैं तो आपके कई झंझटों का स्वत:निदान हो जाता है।

सुरपति दास
इस्कॉन

Tuesday, July 20, 2021

चातुर्मास्य

चातुर्मास्य

चातुर्मास्य अर्थात 4 महीने क्या करें क्या।न करें

आज आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चातुर्मास्य रहता है । इस में अनेक पहलू एवं भाव है 

आज की एकादशी को देवशयनी एकादशी बोलते हैं और कार्तिक शुक्ल की एकादशी को देव उठानी एकादशी कहते हैं तो एक पहलू तो यह है कि आज से 4 महीने तक देव शयन हो जाते हैं इसीलिए लौकिक संसार में कोई भी शुभ कार्य संपन्न नहीं होता है सारे शुभ शुभ कार्य आज विश्राम ले लेते हैं 

दसरा पहलू है स्वास्थ्य को लेकर हम 12 महीने सब कुछ खाते रहते हैं यह 4 माह विशेष रूप से स्वास्थ्य का ध्यान रखें और शरीर को एक प्रकार से फिर से 8 महीने के लिए स्वस्थ बना लें। शरीर के विकारों को निकाल दें शरीर में जो रोग आदि हो गए हैं इन 4 महीनों में हम यदि भोजन शयन आदि का ध्यान रखें तो शरीर का विकार दूर हो जाए 

तीसरी दृष्टि है मौसम के हिसाब से इन 4 महीनों में प्राय बरसात का आक्रमण रहता है । आज तो आने जाने के साधन है । गाड़ी है बस है । कार है वायुयान विमान है आज से 200। 400 साल पहले बरसात के कारण नदियों में बाढ़ आ जाती थी कई रास्ते बंद हो जाते थे कई गाॅव बाढ़ में आ जाते थे तो उस समय इस का एक पहलू यह भी था के व्यक्ति 4 महीने किसी भी एक स्थान पर टिका रहे।

विशेषकर जो परिव्राजक साधु होते थे जो साल भर कभी कहीं कभी कहीं कभी एक वृक्ष के नीचे कभी दूसरे वृक्ष के नीचे भ्रमण करने वाले साधु 4 माह तक किसी एक स्थान पर रहते थे

आवागमन बंद करना भी इस चातुर्मास्य का एक पहलू है । 4 महीने तक ना कहीं जाना ना कहीं आना । एक ही नगर या स्थान में रहकर अपने अपने लक्ष्य को प्राप्त करना । जहां तक भोजन का सवाल है तो

सावन मास में अर्थात पहले महीने में हरी पत्तेदार सब्जियों का त्याग करने का आदेश है 

दूसरी भादो में दही के त्याग का आदेश है 

तीसरे माह आश्विन में दूध के त्याग का आदेश है

और कार्तिक मास में दाल के त्याग का आदेश है

और यह मैंने जैसा कि निवेदन किया शरीर के स्वास्थ्य और शरीर को विकार रहित बनाने के लिए है 

एक और इसका जो पहलु है वह वैष्णवों के लिए है । आप यदि ध्यान से देखें तो इन्हीं चार महीनों में गरु पूर्णिमा झूलन राधाष्टमी जन्माष्टमी एवं अन्य भी अनेक उत्सव आते हैं कुल मिलाकर हर प्रकार से भजन पर ही केंद्रित करना होता है रक्षाबंधन भी इसी दौरान में आता है किसी भी रुप में शरीर को स्वस्थ रखते हुए उससे भजन बने यह एक वैष्णव के केंद्र में रहता है 

इसी चातुर्मास्य में पितृपक्ष श्राद्ध आदि भी आते हैं । इसी चातुर्मास्य में पवित्र दामोदर मास भी आता है इसी में दीपावली आती है इसी में धनतेरस आता है और इसी में अन्नकूट आता है इसी में गोपाष्टमी आती है इसी में अक्षय नवमी आती है इसी में चैतन्य महाप्रभु जी का वृंदावन आगमन उत्सव आता है आदि आदि ।

वैष्णव को चाहिए वह यदि परिव्राजक है अर्थात घूमता है यात्राएं करता है तो यात्रा बंद कर देनी चाहिए । एक स्थान पर आसन लगाकर शरीर को शुद्ध रखें । ब्रह्मचर्य का पालन करें । सीमित भोजन करें । जो वस्तुएं निषेध की हैं उनको निषेध करें यथासंभव भजन में चित्त को लगायें

प्रचारकों को भी चाहिए कि वह 8 महीने प्रचार खूब करें लेकिन इन चार महीनों में आत्मशुद्धि आत्म कल्याण के लिए वह आचरण पर जोर दें कहीं कथा बांचने ना जाए 

और हम जैसे साधारण साधक इनका पालन करते हुए भजन करें । हर दिन आने वाले ठाकुर के उत्सव का आयोजन करें । आनंद से उनका पालन करें और आनंदित हो 

साथ ही क्या होता है यदि 4 महीने तक लगातार हमने कुछ नियमों का पालन किया तो वह हमारी आदत में भी आ जाते हैं । आगामी कुछ महीनों तक वह आदतें हमारी संस्कार बन जाती है फिर जीवन भर चलती है 

इस प्रकार यथासंभव अपनी परिस्थिति अपनी स्थिति अपने स्तर के अनुसार वैष्णवों को भजन पर केंद्रित होते हुए चातुर्मास व्रत का पालन करना चाहिए

समस्त वैष्णव जन को दासाभास का प्रणाम  
जय श्री राधे ॥ जय निताई

Sunday, July 18, 2021

हेरा_पञ्चमी_उत्सव_पर_विशेष

#हेरा_पञ्चमी_उत्सव_पर_विशेष 💐::

रथ यात्रा के बाद आने वाली पञ्चमी को यह उत्सव मनाया जाता हैं ।श्री जगन्नाथ प्रभु अपनी पत्नी श्री लक्ष्मी जी को छोड़कर ( वृन्दावन ) जो यहाँ गुण्डिचा मन्दिर हैं ........पधारे हैं .......प्रभु के आने में विलम्ब होने के कारण श्री लक्ष्मी जी मन्दिर के बाहर हेरा करने ( देखने ) जाती हैं। आज " हेरा पञ्चमी "  अर्थात श्रीलक्ष्मी-विजय का दिन हैं ।

प्रातःकाल ही महाप्रभु अपने भक्तों के साथ सुन्दराचल गये ।( जहाँ गुण्डिचा मन्दिर हैं......उस स्थान को सुन्दराचल कहते हैं ।) और जगन्नाथ जी के दर्शन किये ।आज हेरा-पञ्चमी का उत्सव देखने के लिये प्रभु का मन बहुत उत्कण्ठित हो रहा हैं ।श्री काशीमिश्र ने बड़े आदर के साथ भक्तों के सहित श्री महाप्रभु को सुंदर स्थान पर बैठा दिया ।

प्रभु ने मुस्कुरा कर श्री रूप दामोदर से पूछा -" स्वरुप ! यद्यपि श्री जगन्नाथ जी यहाँ द्वारिका लीला करते हैं अर्थात वे लक्ष्मी जी के वश में रहते हैं तो भी वर्ष में एक बार उनके मन में श्री वृन्दावन दर्शन करने की अपार उत्कण्ठा जाग उठती हैं । यहाँ के जितने पुष्पोद्यान-वन हैं,वे श्री वृन्दावन के समान हैं । उन्हें देखने के लिये उनकी उत्कण्ठा होती हैं, बाहर से तो वे रथयात्रा का बहाना करते हैं और वे नीलाचल छोड़कर सुन्दराचल चले जाते हैं जहाँ पुष्पोद्यानो में दिन-रात लीला करते हैं ।परन्तु वे अपने साथ लक्ष्मी देवी को नही ले जाते ! .....इसका क्या कारण हैं ?? 

 श्री स्वरुप ने कहा -" प्रभो ! इसका कारण यह है कि वृन्दावन की लीला में श्री लक्ष्मी देवी का अधिकार नही है।श्री वृन्दावन की लीला में व्रज-गोपी गण ही सहायक है।उनके सिवा श्री कृष्ण का मन कोई भी हरण नही कर सकता ।

तब प्रभु ने कहा -"स्वरुप ! गोपियों से विहार करने का भाव प्रकट करके वे मन्दिर से बाहर नहीं जाते ।विशेषतः अपनी बहिन श्री सुभद्रा तथा बड़े भाई श्री बलदेव जी को भी साथ ले जाते हैं ।इससे श्री लक्ष्मी जी को यह संदेह भी नही होता कि श्री भगवान् निगूढ़ कुञ्जो में जाकर गोपियों के साथ लीला करते हैं ।उस निगूढ़ लीला को श्री कृष्ण ( श्री जगन्नाथ ) के अतिरिक्त और कोई भी नही जानत़ा है।इसलिये प्रकट रूप से तो जगन्नाथ जी का कोई दोष नहीं दिखता.....फिर भी श्री लक्ष्मी देवी प्रभु पर इतना क्रोध क्यों करती हैं ?

इस पर श्री स्वरुप ने कहा -" प्रेमवती , प्रेयसी का ऐसा स्वभाव होता है। श्री जगन्नाथ जी, श्री लक्ष्मी जी को अपने साथ नहीं ले जाते इसलिये श्री लक्ष्मी जी उन पर क्रोधित होती हैं ।श्री जगन्नाथ प्रभु ने जब रथ-यात्रा प्रारम्भ की थी उस समय श्री लक्ष्मी जी से अगले ही दिन वापिस लौटने का वचन दिया था....श्री लक्ष्मी देवी ने दो-तीन दिन तक प्रतीक्षा की और यह समझने लगी कि प्रभु को उनका विस्मरण हो गया । 

इस प्रकार श्रीमन महाप्रभु तथा स्वरुप बातें कर ही रहे थे इतने में अनेक रत्नों से जडित सोने की पालकी पर सवार ,जिनके साथ शत-शत दासीगण हाथों में छत्र, चामर, ध्वजा ,पताका लिये हुई थी और अनेक देव.... दासीगण नृत्यगान करती हुई जिनके आगे चल रही थी ...पानदान, व्यजन, चँवर हाथ में लिये हुए एवं दिव्य भूषण वस्त्र धारण किये हुए,असंख्य परिवार के साथ अलौकिक ऐश्वर्य युक्त श्री लक्ष्मी जी क्रोधित हो उपस्थित हुई ।श्री लक्ष्मी जी की दासियों ने श्री जगन्नाथ जी के सभी उपस्थित दासगणों को बंदी बना लिया और बाँधकर श्री लक्ष्मी जी के चरणों में उपस्थित किया...... जैसे बहुत सा धन ले जाने वाले चोरों को पकड़ कर राजा के आगे पेश किया जाता हैं ।

जब प्रभु के दास देवी लक्ष्मी जी के चरणकमलों में लाये जाते हैं ....तो वे अचेतन अवस्था में हैं ।लीलारस पुष्टि के लिये इस जड़वत् आचरण को यहाँ 'अचेतन ' कहकर वर्णन किया गया हैं ।

'हेरा पञ्चमी 'के दिन श्री लक्ष्मी जी भी अपनी दासियों के साथ मंदिर से सुन्दराचल जाती हैं और यह लीला सम्पूर्ण होती हैं ।

Saturday, July 17, 2021

*SUGGESTED ORDER / SCHEME OF READING BOOKS*

*SUGGESTED ORDER / SCHEME OF READING BOOKS*
The following is the list of Srila Prabhupada’s books to be read by interested readers, aspiring to be serious in their spiritual life. systematic and regular reading of these books will help the reader clearly understand the philosophy of Krishna consciousness and thus develop faith and conviction ....

CATEGORY I
01. On The Way to Krishna
02. Elevation to Krishna Consciousness
03. Krishna Consciousness the Matchless Gift
04. Krishna the Reservoir of Pleasure
05. Perfection of Yoga
06. Krishna Consciousness – The Topmost Yoga System
07. Beyond Birth and Death
08. Perfect Questions, Perfect Answers
09. Easy Journey to Other Planets
10. Raja Vidya: The King of Knowledge
11. Transcendental Teachings of Prahlad Maharaj
12. Coming Back
13. Message of Godhead*
14. Civilization and Transcendence*
15. Hare Krishna Challenge*
16. Scientific Basis of Krishna Consciousness*
17. Sword of Knowledge*
18. Nectar of Instruction
19. Path of Perfection
20. Issues of Back To Back to Godhead Magazine
21. Prabhupada Lilamrita#



CATEGORY II
These books are to be read after one has completed all books in category I
01. Introduction to Bhagvad Gita As It Is
02. Science of Self-Realization
03. Journey of Self Discovery
04. Life comes from Life
05. Nectar of Devotion (Only Part One)
06. Teachings of Queen Kunti
07. Teachings of Lord Kapila
08. Teachings of Lord Chaitanya
09. Sri Isopanishad
10. Few Shlokas of Bhagvad Gita Everyday
11. Krishna Book#
12. Srimad Bhagavatam (1st Canto) #
13. A Second Chance#



CATEGORY III
These books are to be read after one has completed all books in category I and category II
01. Bhagvad Gita As It Is
02. Srimad Bhagavatam (Canto By Canto)
03. Nectar Of Devotion (Part II And Part III)
04. Chaitanya Charitamrita

* Optional

# Can be read simultaneously

Thursday, July 15, 2021

तुलसी पूजन के लिए श्रील प्रभुपाद के निर्देश*

तुलसी पूजन के लिए श्रील प्रभुपाद के निर्देश*

— *इस्कॉन में तुलसी पूजन आरंभ करने के लिए श्रील प्रभुपाद द्वारा लिखा गया पत्र* —

श्रीमती तुलसी देवी का आपके ऊपर अनुग्रह से मैं अति प्रसन्न हूँ। यदि आप वास्तव में यह तुलसी का पौधा उगा सकें, जोकि मुझे पता है आप कर पाएंगे, तो आश्वस्त रहें कि यह आपकी कृष्ण के प्रति भक्ति का प्रमाण है। मैं अपने समुदाय में यह तुलसी पूजन प्रारंभ करने को लेकर उत्सुक था परन्तु अभी तक मैं सफल नहीं हो पाया था इसलिए जब मैंने यह सुना की आपको यह अवसर मिला है तो मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं है ।

कृपया तुलसी पौधों का निम्नलिखित रूप से ध्यान रखिये। यह तुलसी उगाने का सबसे अच्छा समय है। १५ अप्रैल से १५ जून तुलसी पौधे को लगाने का सबसे अच्छा समय है । मेरी समझ में अभी बीज अंकुरित हो रहे होंगे, इस लिए सम्पूर्ण स्थान को जाली से ढक दें क्योंकि कोमल अंकुरों को कई बार चिड़िया खा लेती है, इसलिए हमें चिडियों से इनकी रक्षा करनी पड़ेगी। सभी भक्तों को कम से कम एक बार प्रातः प्रसाद लेने से पहले इसमें जल देना चाहिए।

जलदान बहुत अधिक मात्रा में न हो अपितु केवल भूमि को कोमल और नम करने के लिए होना चाहिए। सूर्य का प्रकाश भी आने देना चाहिए। जब पौधा ७ इंच तक बढ़ जाये तब आप उसे एक पंक्ति में किसी दुसरे स्थान पर रोपित करें। तत्पश्चात जल देते रहें और पौधे बढ़ते रहेंगे । मेरे विचार से शीत प्रदेशों में यह पौधे नहीं उगते परन्तु आपके पास से यदि ये भेजे जाएँ और भक्त इनका गमलों में ध्यान रखें तो यह अवश्य बढ़ेंगे।

तुलसी पत्र, श्री विष्णु को अति प्रिय है। सभी विष्णु तत्त्व के विग्रहों को तुलसी पत्र प्रचुर मात्रा में चढ़ाये जाने चाहिए। भगवान् विष्णु को तुलसी पत्र की माला भी प्रिय है। तुलसी पत्र को चन्दन लेप के साथ भगवान् के चरण-कमलों पर स्थापित करना उनकी सर्वोत्तम पूजा है। परन्तु हमें अत्यंत सावधान रहना चाहिए कि तुलसी पत्र भगवान् विष्णु और उनके विभिन्न रूपों के अतिरिक्त किसी और को न चरणों में न अर्पित किये जाएँ। यहाँ तक की राधारानी और अध्यात्मिक गुरु के चरणों में भी नहीं तुलसी पत्र अर्पित नहीं करने चाहिए। वे विशेष रूप से भगवान् कृष्ण के चरण-कमलों में अर्पित करने के लिए सुरक्षित हैं। यद्यपि जैसा कि आपने गोविंदा एल्बम में देखा है, इन तुलसी पत्रों को हम भगवान् कृष्ण के चरण कमलों में अर्पित करने हेतु राधारानी की हथेली पर रख सकते हैं।

मैं आपको तुलसी देवी के लिए निम्लिखित तीन मन्त्र दे रहा हूँ :
*वृन्दाय तुलसी देव्यै प्रियायै केशवस्य च । *
*विष्णुभक्तिप्रदे देवी सत्यवत्यै नमो नमः ।।*

यह पंचांग प्रणाम करने के समय बोलना है । और जब आप पौधे से पत्र चुन रहे हों तो निम्नलिखित मन्त्र बोलना चाहिए :
*तुलस्यामृत जन्मासी सदा त्वम् केशव प्रिया ।* 
*केशवार्थ चिनोमी त्वां वरदा भव शोभने ।।*

तुलसी वृक्ष की प्रदक्षिणा के लिए यह मन्त्र है :
*यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च । 
तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणः पदे पदे ।।*

तो तीन मन्त्र हैं, एक प्रणाम करने के लिए, एक प्रदक्षिणा करने के लिए और एक तुलसी पत्र चुनने के लिए। तुलसी पत्र दिन में एक बार प्रातः पूजा और भोग अर्पण के समय उपयोग करने के लिए एकत्रित कर लेने चाहिए। हर पात्र या थाली में कम से कम एक तुलसी पत्र होना ही चाहिए। तो आप इन तुलसी सेवा के नियमों का पालन करो और अन्य केन्दों में अपने अनुभव को बाँटने का प्रयास करो, यह कृष्ण भावनामृत आन्दोलन के इतिहास में एक नया अध्याय होगा ।

Tuesday, July 6, 2021

जय श्री श्याम

🌹🌴🌺🍁🌻🍁🌺🌴🌹
  *जय श्री श्याम*

*किसने कितना दिया, कितना बचाया*
      ईश्वर ने सरल गणित लगाया
     *सबको खाली हाथ भेजा*
    और खाली हाथ वापस बुलाया 
      *इस जीवन की चादर में*
          सांसों के ताने बाने हैं'
   *दुख की थोड़ी सी सलवट है*
       सुख के कुछ फूल सुहाने हैं. 
    *क्यों सोचे आगे क्या होगा*
      अब कल के कौन ठिकाने हैं
       *ऊपर बैठा वो बाजीगर*
         जाने क्या मन में ठाने है
    *चाहे जितना भी जतन करे*
         भरने का दामन तारों से
       *झोली में वो ही आएँगे*
         जो ईश्वर ने लिख दिये 
       *सबके नाम के दाने है* 
*जय श्री श्याम*
                                 
🌹🌴🌺🍁🌻🍁🌺🌴🌹

Sunday, July 4, 2021

Puri residents are not allowed to see the procession from the roof

Puri residents are not allowed to see the procession from the roof

 People living in Puri Baddanda cannot see the rath yatra from the roof.  Such a decision was taken by the district administration on Saturday.  Although it has been previously decided that devotees can stay on the roof and watch the procession, it has been changed today.  In addition, the district magistrate Samarth Burma asked devotees to stay indoors during the procession.

 “No one can see the rath yatra on the roof of the houses on both sides of the bar.  The curfew will be in force in Puri during the procession.  The curfew will be in force one night before and the next afternoon.  In addition, Section 114 will be issued in Puri city, ”the district magistrate said.

 “The hotels and lodges in Baddanda will be vacated two days before the rath yatra,” the district magistrate added.  "People can stay in hotels in other parts of the city, but they are not allowed to go out during the curfew."

 Puri SDP, on the other hand, said, “There are 230 houses in Baddanda.  Staying on the roofs of houses is prohibited from seeing rath yatras.  The public will be made aware of this.  There are about 41 hotels and lodges in Baddand.  This lodge has been negotiated with the owners.  The decision was made not to book tourists two days before the ride.  In addition, these hotels and lodges will be vacated. ”

Thursday, July 1, 2021

राम राम जी

✍🏼राम राम जी🌹
*उन्होंने कहा :- कुछ मांगों।*

मैंने उनसे उन्हें ही मांग लिया।

*उन्होंने कहा :- मुझे नहीं, कुछ और मांगों।*

मैंने कहा :- राधा के श्याम दे दो।

उन्होंने कहा :- अरे बाबा, मुझे नहीं कुछ और मांगों।

मैंने कहा :- मीरा के गिरिधर दे दो।

उन्होंने फिर कहा :- तुम्हें बोला ना कुछ और मांगों।

मैंने कहा :- अर्जुन के पार्थ दे दो।

*अब तो उन्होंने पूछना ही बंद कर दिया। केवल इशारे से बोले :- कुछ और।*

अब तो मैं भी शुरू हो गई :-

यशोदा मईया का लल्ला दे दो।
गईया का गोपाल दे दो।
सुदामा का सखा दे दो।
जना बाई के विठ्ठल दे दो।
हरिदास के बिहारी दे दो।
सूरदास के श्रीनाथ दे दो।
तुलसी के राम दे दो।

*ठाकुर जी पूछ रहे है :- तेरी सूई मेरे पे ही आके क्यों अटकती हैं ?*

मैंने भी कह दिया :- क्या करूँ प्यारे।
जैसे घडी का सैल जब खत्म होने वाला होता है तो उसकी सूई एक ही जगह खडी-खडी थोड़ी-थोड़ी हिलती रहती हैं।
बस ऐसा ही कुछ मेरे जीवन का हैं।श्वास रूपी सैल अब खत्म होने को हैं।
*संसार के चक्कर काट-काट कर सैकडों बार तेरे पास आई।लेकिन अपने मध मे चूर फिर वापिस लौट गई।*
परन्तु अब नहीं प्यारे।अब और चक्कर नहीं।
*अब तो केवल तुम।*
हाँ तुम।
सिर्फ तुम।
*तुम तुम और तुम।*

****(जय जय श्री राधे)****