Wednesday, June 30, 2021

Why to chant Hare Krishna ??

Q. *Why to chant Hare Krishna??*

*1. Brihadnāradiya Purān*
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलं। कलौ नास्त्यैव नास्त्यैव नास्त्यैव गतिरन्यथा।।
Translation: Harinām, Harinām, Harinām is the ONLY and foremost means to achieve emancipation. There is no other way, no other way, no other way in this age of Kali.

*2. Sri Chaitanya Charitamrita* 1.17.22
कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार। नाम हइते हय सर्व जगत निस्तार।।
Translation: In this age of Kali, Krishna has incarcerated in form of his holy name, the Hare Krishna mahamantra. It is only by his holy can the entire universe be delivered.

*3. Kali-Santarana Upanishad of Yajur Veda*
(Lord Brahma is answering to Narada's question)
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इति षोडषकं नाम्नाम् कलि कल्मष नाशनं। नात: परतरोपाय: सर्व वेदेषु दृश्यते।।
Translation: Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare. Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare. This sixteen named mantra can counteract the evil effects of Kali. No better means is seen in the entire Vedas than it.

*4. Ananta Samhita of Atharva Veda*
षोडषैतानि नामानि द्वत्रिन्षद्वर्णकानि हि। कलौयुगे महामंत्र: सम्मतो जीव तारिणे।।
Translation: Consisting of sixteen names & of thirty-two varnas(alphabets), the maha-mantra(Hare Krishna maha-mantra) is the only means of deliverance for all living entities in Kali-yuga.

*5. Chaitanya Upanishad of Atharva Veda*
स: ऐव मूलमन्त्रं जपति हरेर इति कृष्ण इति राम इति।
Translation: He(Lord Chaitanya) constantly chants the prime mantra, consisting of 'Hare' followed by 'Krishna' & then 'Rama'.

*6. Sri Vishnu Dharmottara Puran*
जपतो हरिनामानिस्थानेशतगुणाधिक:। आत्मानञ्चपुनात्युच्चैर्जपन्श्रोतृन्पुनातपच॥
Translation: Chanting of Hari-nama loudly is hundred times better than Japa. By Japa one purifies oneself, while by loud chanting one purifies the self & the hearers.

*7. Padma Purān*
द्वत्रिन्षदक्षरं मन्त्रं नाम षोडषकान्वितं। प्रजपन् वैष्णवो नित्यं राधाकृष्ण स्थलं लभेत्।।
Translation: Vaishnavas who daily chant the thirty-two lettered maha-mantra consisting of the sixteen holy names, easily attain to the abode of Radha-Krishna.

*8. Padma Purān*
नाम: चिंतामणि कृष्णश्चैतन्य रस विग्रह:। पूर्ण शुद्धो नित्यमुक्तो भिन्नत्वं नाम नामिनो:।।
Translation: The holy name of Krishna is like Chintamani & embodiment of transcendental bliss. It is completely pure & eternal. There is no difference between Krishna & his holy name.

*9. Lord Shiva is saying to Mother Parvati*
श्रीराम राम रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने॥
Translation: By meditating on 'Rama Rama Rama', my mind gets absorbed in the divine consciousness of Rama. These(3 names of) Rama is equal to the thousand names of Vishnu(Vishnu Sahasranama) in comparison.

*10. Brahmanda Puran*
सहस्त्र नाम्नां पुण्यानां त्रिरा-वृत्त्या तु यत-फलम्। एकावृत्त्या तु कृष्णस्य नामैकम तत प्रयच्छति॥
Translation: The pious result obtained by reciting three thousand names of Lord Vishnu(3 times recitation of Vishnu Sahasranam) can be obtained by chanting only once the holy name of Lord Krishna.

*11. Hari-Vamsha Puran*
वेदेरामायणेचैवपुराणेभारतेतथा। आदावन्तेचमध्येचहरि: सर्वत्र गीयते॥
Translation: In Vedas, Ramayan, Puranas & Mahabharata as well as in the beginning, end or middle of these; Everywhere Lord Hari has been glorified 
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-Srila Prabhupada 
#leagueofdevotees

Saturday, June 26, 2021

संतवाणी

श्रीहरिः 

*विपत्ति असल में उन्हीं को विशेष दुःख देती है, जो उससे डरते हैं। जिसका मन दृढ़ हो संसार की  अनित्यता का अनुभव करता हो और हरेक बात में भगवान् की दया देखकर निडर रहता हो, उसके लिए विपत्ति फूलों की सेज के समान है।*

— संतवाणी

Thursday, June 24, 2021

ठाकुर जी का रुला देने वाला प्रसंग

ठाकुर जी का रुला देने वाला प्रसंग🌷* 

 *नंद बाबा चुपचाप रथ पर कान्हा के वस्त्राभूषणों की गठरी रख रहे थे। दूर ओसारे में मूर्ति की तरह शीश झुका कर खड़ी यशोदा को देख कर कहा- दुखी क्यों हो यशोदा, दूसरे की वस्तु पर अपना क्या अधिकार?*

*यशोदा ने शीश उठा कर देखा नंद बाबा की ओर, उनकी आंखों में जल भर आया था। नंद निकट चले आये। यशोदा ने भारी स्वर से कहा- तो क्या कान्हा पर हमारा कोई अधिकार नहीं? ग्यारह वर्षों तक हम असत्य से ही लिपट कर जीते रहे?*

*नंद ने कहा- अधिकार क्यों नहीं, कन्हैया कहीं भी रहे, पर रहेगा तो हमारा ही लल्ला न! पर उसपर हमसे ज्यादा देवकी वसुदेव का अधिकार है, और उन्हें अभी कन्हैया की आवश्यकता भी है।*

*यशोदा ने फिर कहा- तो क्या मेरे ममत्व का कोई मोल नहीं?*
*नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा- ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा। पर देखो तो, कान्हा ने इन ग्यारह वर्षों में हमें क्या नहीं दिया है।*

 *उम्र के उत्तरार्ध में जब हमने संतान की आशा छोड़ दी थी, तब वह हमारे आंगन में आया। तुम्हें नहीं लगता कि इन ग्यारह वर्षों में हमने जैसा सुखी जीवन जिया है, वैसा कभी नहीं जी सके थे।*

 *दूसरे की वस्तु से और कितनी आशा करती हो यशोदा, एक न एक दिन तो वह अपनी वस्तु मांगेगा ही न! कान्हा को जाने दो यशोदा।*

*यशोदा से अब खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वे वहीं धरती पर बैठ गयी, कहा- आप मुझसे क्या त्यागने के लिए कह रहे हैं, यह आप नहीं समझ रहे।*

*नंद बाबा की आंखे भी भीग गयी थीं। उन्होंने हारे हुए स्वर में कहा- तुम देवकी को क्या दे रही हो यह मुझसे अधिक कौन समझ सकता है यशोदा! आने वाले असंख्य युगों में किसी के पास तुम्हारे जैसा दूसरा उदाहरण नहीं होगा। यह जगत सदैव तुम्हारे त्याग के आगे नतमस्तक रहेगा।*

*यशोदा आँचल से मुह ढांप कर घर मे जानें लगीं तो नंद बाबा ने कहा- अब कन्हैया तो भेज दो यशोदा, देर हो रही है।*
*यशोदा ने आँचल को मुह पर और तेजी से दबा लिया, और अस्पष्ट स्वर में कहा- एक बार उसे खिला तो लेने दीजिये, अब तो जा रहा है। कौन जाने फिर...*

*नंद चुप हो गए।*

*यशोदा माखन की पूरी मटकी ले कर ही बैठी थीं, और भावावेश में कन्हैया की ओर एकटक देखते हुए उसी से निकाल निकाल कर खिला रही थी। कन्हैया ने कहा- एक बात पूछूं मइया?*

*यशोदा ने जैसे आवेश में ही कहा- पूछो लल्ला।*

*तुम तो रोज मुझे माखन खाने पर डांटती थी मइया, फिर आज अपने ही हाथों क्यों खिला रही हो?*

*यशोदा ने उत्तर देना चाहा पर मुह से स्वर न फुट सके। वह चुपचाप खिलाती रही। कान्हा ने पूछा- क्या सोच रही हो मइया?*

*यशोदा ने अपने अश्रुओं को रोक कर कहा- सोच रही हूँ कि तुम चले जाओगे तो मेरी गैया कौन चरायेगा।*

*कान्हा ने कहा- तनिक मेरी सोचो मइया, वहां मुझे इस तरह माखन कौन खिलायेगा? मुझसे तो माखन छिन ही जाएगा मइया।*

*यशोदा ने कान्हा को चूम कर कहा- नहीं लल्ला, वहां तुम्हे देवकी रोज माखन खिलाएगी।*

*कन्हैया ने फिर कहा- पर तुम्हारी तरह प्रेम कौन करेगा मइया?*

*अबकी यशोदा कृष्ण को स्वयं से लिपटा कर फफक पड़ी। मन ही मन कहा- यशोदा की तरह प्रेम तो सचमुच कोई नहीं कर सकेगा लल्ला, पर शायद इस प्रेम की आयु इतनी ही थी।*

*कृष्ण को रथ पर बैठा कर अक्रूर के संग नंद बाबा चले तो यशोदा ने कहा- तनिक सुनिए न, आपसे देवकी तो मिलेगी न? उससे कह दीजियेगा, लल्ला तनिक नटखट है पर कभी मारेगी नहीं।*

*नंद बाबा ने मुह घुमा लिया। यशोदा ने फिर कहा- कहियेगा कि मैंने लल्ला को कभी दूब से भी नहीं छुआ, हमेशा हृदय से ही लगा कर रखा है।*

*नंद बाबा ने रथ को हांक दिया। यशोदा ने पीछे से कहा- कह दीजियेगा कि लल्ला को माखन प्रिय है, उसको ताजा माखन खिलाती रहेगी। बासी माखन में कीड़े पड़ जाते हैं।*

*नंद बाबा की आंखे फिर भर रही थीं, उन्होंने घोड़े को तेज किया। यशोदा ने तनिक तेज स्वर में फिर कहा- कहियेगा कि बड़े कौर उसके गले मे अटक जाते हैं, उसे छोटे छोटे कौर ही खिलाएगी।*

*नंद बाबा ने घोड़े को जोर से हांक लगाई, रथ धूल उड़ाते हुए बढ़ चला।*
*यशोदा वहीं जमीन पर बैठ गयी और फफक कर कहा- कृष्ण से भी कहियेगा कि मुझे स्मरण रखेगा।*

*उधर रथ में बैठे कृष्ण ने मन ही मन कहा- तुम्हें यह जगत सदैव स्मरण रखेगा मइया। तुम्हारे बाद मेरे जीवन मे जीवन बचता कहाँ है ?*

😥😥😥
 *लीलायें तो ब्रज में ही छूट जायेंगी..*
*हाथी घोड़ा पालकी - जय कन्हैया लाल की*

🙏🙏जय श्री राधे कृष्णा🙏🙏

Wednesday, June 23, 2021

श्रीमद् भागवतम् प्रथम स्कन्द आठवा अध्याय श्लोक क्रमांक 26
जनमेश्वर्य श्रुत श्रीभि एधमान मद पुमान्
नैवारहत्य अभिधातुमवै त्वाम् अकिंचन गोचरं




अनुवाद श्रीमती कुंती महारानी कहती  है !हे प्रभु आप सरलता से  प्राप्त होने वाले है लेकिन केवल उन्ही के द्वारा जो भौतिक दृष्टी से अकिंचन है !
जो सन्मानित कुल ऐश्वर्य उच्च शिक्षा तथा शारीरिक सौंदर्य के द्वारा भौतिक प्रगित के पथ पर आगे बढ़ने के प्रयास में लगा रहता है !!
वह आप तक एकनिष्ठ भाव से नहीं पहुँच पाता

भागवत गीता

भगवद-गीता
अध्याय 6 : श्लोक 6

बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।
अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्तेतात्मैव शत्रुवत् ॥६॥

जिसने मन को जीत लिया है उसके लिए मन सर्वश्रेष्ठ मित्र है, किन्तु जो ऐसा नहीं कर पाया इसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा |

Saturday, June 19, 2021

कीर्तन ।

कीर्तन कब हो सकता है ??

दो चीज जब तक जीवन में से नहीं हटी गायन तो हो सकता है पर कीर्तन नहीं हो सकता। गायन करना और कीर्तन करने में फरक है। जब तक तुम्हारे जीवन में से या तुम्हारे स्वभाव में से कीर्ति और तन की चिंता नहीं मिटेगी तब तक कीर्तन नहीं हो सकता। तब तक गायन कर सकते हो। 

गायन तो कोई भी सुरीला कर सकता है गायन तो बड़े बड़े लोग करते थे तानसेन भी गाता था। तानसेन गायक था स्वामी हरिदास कीर्तनिया थे। फरक है दोनों में। जो कीर्ति और तन से ऊपर उठा वो कीर्तनिया है। 

मीरा गाती थी- 
लोग कहे मीरा भयी बाँवरी सास कहे कुल नाशी रे।
इस पद पर मीरा कीर्ति से ऊपर उठ गयी और 
राणा भेज्यो विष को प्यालो पीवत मीरा हाँसी रे।।
इस लाइन में मीरा तन से ऊपर उठ गयी इसलिए जब मीरा बोलती थी तब गिरधर नाचता था। 

गायक जगत को नचाते हैं और कीर्तनिया जगन्नाथ को नचाते हैं।

Friday, June 18, 2021

निर्जला एकादशी

21 जून को आनेवाली सबसे पावन और पवित्र निर्जला एकादशी के व्रत की विधि

- निर्जला एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद भगवान कृष्ण की पूजा आरती करें, अधिक से अधिक हरे कृष्ण महामंत्र का जप करें, भगवद गीता, श्रीमद भागवतम का श्रवण करें, अध्ययन करें और यथाशक्ति दान करें | 
- पुरे दिन निर्जल और निराहार रहें | 
- द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद पारण समय के अनुसार जल ग्रहण करके इस व्रत का समापन करें | 
- यदि आप शारीरिक रूप से अस्वस्थ हैं तो कृपया अपने डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करें। 
- यदि आप निर्जल व्रत रखने में असमर्थ हैं तो सामान्य एकादशीयों की तरह भी व्रत रख सकते है।
- इस तरह जो भी यह पवित्र एकादशी व्रत करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर मोक्ष के योग्य बनता है।
वर्ष में केवल एक बार आने वाले इस सुअवसर का लाभ उठायें, व्रत अवश्य रखें।

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Sunday, June 13, 2021

छप्पन भोग

((( छप्पन भोग क्यों लगाते है…? ))))
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भगवान को लगाए जाने वाले भोग
की बड़ी महिमा है। इनके लिए 56 प्रकार के व्यंजन परोसे जाते हैं, जिसे छप्पन भोग कहा जाता है।
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यह भोग रसगुल्ले से शुरू होकर दही, चावल, पूरी, पापड़ आदि से होते हुए इलायची पर जाकर खत्म होता है।
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अष्ट पहर भोजन करने वाले बालकृष्ण भगवान को अर्पित किए जाने वाले छप्पन भोग के पीछे कई रोचक कथाएं हैं।
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ऐसा कहा जाता है कि यशोदा जी बालकृष्ण को एक दिन में अष्ट पहर भोजन कराती थी। अर्थात् श्री बालकृष्ण लाल आठ बार भोजन करते थे।
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जब इंद्र के प्रकोप से सारे व्रज को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत
को उठाया था, तब लगातार सात दिन तक
भगवान ने अन्न जल ग्रहण नहीं किया।
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आठवे दिन जब भगवान ने देखा कि अब इंद्र की वर्षा बंद हो गई है, सभी व्रजवासियो को गोवर्धन पर्वत से बाहर निकल जाने को कहा..
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तब दिन में आठ प्रहर भोजन करने वाले व्रज के नंदलाल कन्हैया का लगातार सात दिन तक भूखा रहना उनके व्रज वासियों और मैया यशोदा के लिए बड़ा कष्टप्रद हुआ।
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भगवान के प्रति अपनी अन्न्य श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए सभी व्रजवासियो सहित यशोदा जी ने 7 दिन और अष्ट पहर के हिसाब से 7X8= 56 व्यंजनो का भोग बाल कृष्ण को लगाया।
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गोपिकाओं ने भेंट किए छप्पन भोग...
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श्रीमद्भागवत के अनुसार, गोपिकाओं ने एक माह तक यमुना में भोर में ही न केवल स्नान किया, अपितु कात्यायनी मां की अर्चना भी इस मनोकामना से की, कि उन्हें नंदकुमार ही पति रूप में प्राप्त हों।
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श्रीकृष्ण ने उनकी मनोकामना पूर्ति की सहमति दे दी।
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व्रत समाप्ति और मनोकामना पूर्ण होने के
उपलक्ष्य में ही उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने छप्पन भोग का आयोजन किया।
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छप्पन भोग हैं छप्पन सखियां...
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ऐसा भी कहा जाता है कि गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधिका जी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजते हैं।
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उस कमल की तीन परतें होती हैं। प्रथम परत में “आठ”, दूसरी में “सोलह”
और तीसरी में “बत्तीस पंखुड़िया” होती हैं।
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प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में श्री भगवान विराजते हैं।
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इस तरह कुल पंखुड़ियों संख्या छप्पन होती है। 56 संख्या का यही अर्थ है।
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छप्पन भोग इस प्रकार है...
1. भक्त (भात),
2. सूप (दाल),
3. प्रलेह (चटनी),
4. सदिका (कढ़ी),
5. दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),
6. सिखरिणी (सिखरन),
7. अवलेह (शरबत),
8. बालका (बाटी),
9. इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),
10. त्रिकोण (शर्करा युक्त),
11. बटक (बड़ा),
12. मधु शीर्षक (मठरी),
13. फेणिका (फेनी),
14. परिष्टïश्च (पूरी),
15. शतपत्र (खजला),
16. सधिद्रक (घेवर),
17. चक्राम (मालपुआ),
18. चिल्डिका (चोला),
19. सुधाकुंडलिका (जलेबी),
20. धृतपूर (मेसू),
21. वायुपूर (रसगुल्ला),
22. चन्द्रकला (पगी हुई),
23. दधि (महारायता),
24. स्थूली (थूली),
25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी),
26. खंड मंडल (खुरमा),
27. गोधूम (दलिया),
28. परिखा,
29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त),
30. दधिरूप (बिलसारू),
31. मोदक (लड्डू),
32. शाक (साग),
33. सौधान (अधानौ अचार),
34. मंडका (मोठ),
35. पायस (खीर)
36. दधि (दही),
37. गोघृत,
38. हैयंगपीनम (मक्खन),
39. मंडूरी (मलाई),
40. कूपिका (रबड़ी),
41. पर्पट (पापड़),
42. शक्तिका (सीरा),
43. लसिका (लस्सी),
44. सुवत,
45. संघाय (मोहन),
46. सुफला (सुपारी),
47. सिता (इलायची),
48. फल,
49. तांबूल,
50. मोहन भोग,
51. लवण,
52. कषाय,
53. मधुर,
54. तिक्त,
55. कटु,
56. अम्ल.
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  ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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Wednesday, June 9, 2021

सिलाई मशीन ।

सिलाई मशीन में धागा ना डालने पर वह चलती जरूर है पर कुछ सिलती नहीं, उसी प्रकार श्वासों में भगवान का नाम नहीं डालेंगे तो वह चलेंगे तो जरुर पर व्यर्थ हो जाएंगे। वही श्वास, वही पल, वही आंसू जो  हरि के लिए बहाए वही हमारे काम आएंगे बाकी सब व्यर्थ हैं।
सदा भगवान के पवित्र नमो का जाप करें 

हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे

Saturday, June 5, 2021

भक्त

भक्त का संबंध जब भगवान से है। तब वह हर तरह से तृप्त है। क्योंकि वहां कोई इच्छा शेष नहीं ? एक इच्छा शेष बचती है, कि वह अपने आराध्य के करीब रहे।

वहीं संसार के बंधनों से व्यक्ति कभी तृप्त नहीं । जिससे भी प्रेम करें, न जाने कब इस संसार से रुकसत हो, हमें धोखा दे दे । वह मां हो,बाप हो, भाई, बहन, बंधु, सखा मित्र कोई भी हो सकता है। यही सच है।

तो फिर सांसारिक बंधनों से प्रेम करना तो सही,  मगर जकड़ना सही नहीं, जकड़ कर फिर दुख के सिवा कुछ हाथ नहीं आता।  क्योंकि जो चला गया वो लौटकर नहीं आएगा और निश्चित जाना हम सबको है, सबका दिन समय क्षण पल तय है, सब प्रारब्ध है, तो फिर मोह में जकड़ना क्यों ? 

जकड़ना ही है, बंधना ही है, तो उससे मोह करें उससे जकड़े। जो मृत्यु उपरांत हमें स्वयं लेने आएंगे। हमारे भगवान, जो हमारी माता पिता बंधु सखा मित्र सभी कुछ है। जहां सभी रिश्तों नातों का सुख है परमानंद है। 

परम आनंद की अनुभूति व्यक्त नहीं की जा सकती। सिर्फ स्वयं अनुभव की जा सकती है। जो इस लोक में भी आनंद देती है और परलोक में भी परम आनंद देती है। परम आनंद की गहराई में उतरने के लिए स्वयं की खोज करनी होगी।

Tuesday, June 1, 2021

Srilā Prabhupāda's Lecture

"When I was householder, my second son—he was about four years old—he was walking with me on the street, and he was asking me, "Father, why the moon is going with us? Why the moon is going with us?" Yes. The moon is... As you find that the moon is going with you, similarly, by chanting, if the moon has got such power—it is a material thing; it can go with you—don't you think the Supreme Lord, who is all-powerful, He cannot remain with you? Yes. He can. By His potency, He can remain with you, provided you are also qualified to keep His company. If you are a pure devotee and if you are always merged in the thought of Kṛṣṇa, you should always remember that Kṛṣṇa is with you. Kṛṣṇa is with
you."

[Srilā Prabhupāda's Lecture on BG 8.22-27 - New York, November 20, 1966]