Saturday, October 9, 2021

ये लीला महादेव के गोपी रूप धारण करने के बाद की उनके द्वारा की गई प्रार्थना की है।

ये लीला महादेव के गोपी रूप धारण करने के बाद की उनके द्वारा की गई प्रार्थना की है। 

शरद पूर्णिमा की शरत-उज्ज्वल चाँदनी में वंशीवट यमुना के किनारे श्याम सुंदर साक्षात की वंशी जब बज उठी.तब कृष्ण-राधा और अन्य गोपिकाओं की रासलीला देखने के लिए भगवान महादेव अपनी समाधि भंग कर कैलाश से सीधे वृंदावन चले आए. वहां रास लीला के प्रवेश द्वार पर गोपियों ने शिवजी को रोक दिया और कहा कि यहां भगवान श्रीकृष्ण के अलावा किसी अन्य पुरुष का प्रवेश वर्जित है. इस पर शंकर ने गोपियों को ही कुछ उपाय बताने के लिए कहा.ललिता सखी ने कहा - हे भोले बाबा ! आप मानसरोवर में स्नान कर गोपीका रूप धारण करके महारास में प्रवेश हुआ जा सकता है. फिर क्या था, शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये. श्री यमुना जी ने षोडश श्रृंगार कर दिया, तो बाबा भोलेनाथ गोपी रूप हो गये. प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश करने चले प्रवेश द्वार पर ललिता जी खड़ी थी गोपी रूप धारी शिव के कानो में युगल मंत्र का उपदेश किया है,क्योकि ललिता सखी के आदेश के बिना कोई रास में प्रवेश नहीं कर सकता था .महादेव गोपी रूप धारण कर लीला में प्रवेश कर गए.श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रासस्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्वमोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे।मोहन ने ऐसी मोहिनी वंशी बजायी कि सुधि-बुधि भूल गये भोलेनाथ, नटवर-वेषधारी, श्रीरासविहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्रीराधाजी एवं गोपियों को नृत्य एवं रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ता थैया कर नाच उठे.और उनकी सिर से साड़ी सरक गई.सर्वज्ञ भगवान कृष्ण पहचान गए भोलेनाथ को. उन्होंने रासेश्वरी श्रीराधा व गोपियों को छोड़कर ब्रज-वनिताओं और लताओं के बीच में गोपी रूप धारी गौरीनाथ का हाथ पकड़ लिया और मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए बड़े ही आदर-सत्कार से बोले, "आइये स्वागत है, महाराज गोपेश्वर.श्री राधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं.
तब श्रीकृष्ण ने कहा, "राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् शंकरजी हैं.हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है.तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, - "आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया?
शंकरजी बोले, - "प्रभो! आपकी यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है.
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इस पर प्रसन्न होकर श्रीराधाजी ने श्रीमहादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्रीशिव जी ने यह वर माँगा "हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनोंके चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो.आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं._ 

इस पर परमेश्वर श्रीकृष्ण ने तथास्तु कहकर यमुना के निकट वंशीवट के सम्मुख शंकरजी को श्री गोपीश्वर महादेव के रूप में विराजित कर दिया.साथ ही, उनसे यह कहा कि किसी भी व्यक्ति की व्रज-वृंदावन यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब वह गोपीश्वर महादेव के दर्शन कर लेगा.यहां प्रतिदिन शिवलिंग की जल, दूध, दही, पंचामृत से रुद्राभिषेक और पूजा-अर्चना होती है.संध्याकाल में नित्य शिवलिंग का गोपी रूप में श्रृंगार होता है.

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